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घर क्यों लेट आता हूं

घर क्यों लेट आता हूं वह फरियाद करती है शक भरी नजरों से देखती है अजब गजब के सवाल करती है जान बचती है बहुत मुश्किल से लाख सफाई देने के बाद, वह बेतहाशा मुझसे प्यार करती है

काश उस तरह जिंदगी संवर जाती

 काश उस तरह जिंदगी संवर जाती जिस तरह ख्वाब देखता हूं जब भी कदम उठाता हूं मंजिल की ओर कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो जाती है घबराता नहीं हूं यह सोच कर मुश्किलों से होकर खुशियों के रास्ते  निकलते हैं